Satellite Internet: आज इंटरनेट के बिना जीवन की कल्पना करना बहुत ही कठिन है। जहां हम 2G, 3G, 4G और अभी 5G तकनीक का प्रयोग इंटरनेट चलाने के लिए कर रहे हैं। वही अभी एक नई टेक्नोलॉजी ने विश्व में कदम रखा है, जिसे हम सैटेलाइट इंटरनेट के नाम से जानते हैं। हालांकि यह सैटेलाइट इंटरनेट कोई नई टेक्नोलॉजी नहीं है, इसका प्रयोग बहुत समय से होता चला आ रहा है। पहले इसका प्रयोग मुख्यतः सेना एवं वैज्ञानिकों तक ही सीमित था। परंतु अब आम व्यक्ति भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। आईए इस लेख के माध्यम से जानते हैं की सैटेलाइट इंटरनेट क्या है? और यह काम कैसे करता है? और इसके क्या-क्या फायदे हैं?
सैटेलाइट इंटरनेट क्या है?
सैटेलाइट इंटरनेट एक हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा है जहां हम बिना किसी तार के सीधे अन्तरिक्ष में स्थित सैटेलाइट के माध्यम से इंटरनेट का प्रयोग कर पाते हैं। जहां अभी तक हमें इंटरनेट उपयोग करने के लिए ऑप्टिक फाइबर केबल अथवा डायल-अप जैसे ब्रॉडबैंड सर्विस का उपयोग करना पड़ता था, वही सैटेलाइट इंटरनेट के माध्यम से हम सीधे अंतरिक्ष से डाटा सिग्नल्स को अपने सैटेलाइट रिसीवर डिश के माध्यम से रिसीव कर पाते हैं।
इंटरनेट की दुनिया में सैटेलाइट इंटरनेट एक बहुत ही क्रांतिकारी तकनीक है। इसके माध्यम से हम उन इलाकों में भी इंटरनेट का उपयोग कर पाएंगे जहां ऑप्टिक फाइबर केबल बिछाना बेहद ही मुश्किल कार्य है। इसके साथ ही हम जल्द ही अपने स्मार्टफोन पर भी डायरेक्ट सॅटॅलाइट इन्टरनेट का उपयोग कर पाएंगे।
सैटेलाइट इंटरनेट कैसे काम करता है?
सीधे-सीधे समझे तो सैटेलाइट इंटरनेट डायरेक्ट स्पेस से यूजर तक एक जटिल प्रक्रिया के माध्यम से निरंतर डाटा को ट्रांसमिट करता है। सैटेलाइट इंटरनेट के द्वारा यूजर तक बिना रुकावट डायरेक्टर डाटा ट्रांसमिट करने के लिए इन निम्न चरणों का प्रयोग होता है।
1- डाटा को सैटेलाइट तक अपलोड करना
इंटरनेट सेवा प्रदाता ISP जिओ स्टेशनरी ऑर्बिट में स्थित सैटेलाइट तक डाटा अपलोड करने के लिए धरती पर स्थित ग्राउंड स्टेशन का उपयोग करता है।
यह डाटा धरती पर स्थित विशालकाय एन्टीनाओं के माध्यम से सैटेलाइट तक बेहद उच्च गति से निरंतर ट्रांसमिट किया जाता है, जिसकी सहायता से दो तरफा कम्युनिकेशन लिंक स्थापित किया जा सके।
2- उपयोगकर्ता के डिवाइस तक सेटेलाइट द्वारा ट्रांसमिशन
प्रत्येक कम्युनिकेशन सेटेलाइट रेडियो सिग्नल के द्वारा अंतरिक्ष से धरती पर डाटा को रिसीव और ट्रांसमिट करता है।
इन सिगनल्स को यूजर के यहां स्थित एक सैटेलाइट रिसीवर डिवाइस (डिस) के द्वारा कैप्चर किया जाता है। यह रिसीविंग डिस अधिकतर यूजर के छतों पर लगा होता है।
3- यूजर कनेक्शन
अब जानते हैं की एक सैटेलाइट इन्टरनेट उपयोगकर्ता कैसे सैटेलाइट से कनेक्ट होता है। सैटेलाइट यूजर के पास जो सैटेलाइट रिसीवर डिश अथवा सैटेलाइट रिसीवर डिवाइस होता है वह डिश एक मॉडेम से जुड़ा होता है, जो प्राप्त सिग्नल्स को कंप्यूटर और अन्य उपकरणों के लिए उपयुक्त डिजिटल फॉर्मेट में परिवर्तित करता है, फिर मॉडेम को राउटर से जोड़ा जाता है, जिससे कई डिवाइस एक साथ इंटरनेट से जुड़ सकते हैं। इस प्रकार से हम अपने डिवाइस को सैटेलाइट इन्टरनेट से कनेक्ट करते हैं।
सैटेलाइट इंटरनेट में प्रयोग होने वाले सैटेलाइट के प्रकार:
जियोस्टेशनरी सैटेलाइट (GEO):
Geostationary Satellites : जियोस्टेशनरी सैटेलाइट (भूस्थैतिक उपग्रह) ऐसे सैटेलाइट होते हैं जो पृथ्वी से 35786 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित भूमध्य रेखीय भूस्थिर कक्षा में पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं। ऐसे उपग्रह लगभग लगभग पृथ्वी की गति से ही घूर्णन करते हैं। ऐसे सैटेलाइट का उपयोग अधिकतर आपके घरों में लगने वाले डिश में किया जाता है। ऐसे सेटेलाइट्स का क्षेत्रफल एक सीमित स्थान तक होता है।
लो अर्थ आर्बिट सैटेलाइट (LEO):
Low Earth Orbit Satellites : लो अर्थ ऑर्बिट या पृथ्वी की निचली कक्षा जिसकी ऊंचाई लगभग 400 किलोमीटर से लेकर 2000 किलोमीटर के बीच पृथ्वी के चारों तरफ होती है। स्पेसएक्स की स्टारलिंक, वनवेब और अमेज़ॅन की प्रोजेक्ट कुइपर जैसी कंपनियां वैश्विक ब्रॉडबैंड इंटरनेट कवरेज प्रदान करने के लिए किसी कक्षा ऑर्बिट का प्रयोग करती हैं एवं यह कंपनियां LEO उपग्रहों के बड़े समूह को तैनात भी कर रही हैं।
पृथ्वी से कम ऊंचाई पर होने के कारण यह उपग्रह बहुत ही आसानी से लो लेटेंसी के साथ हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करते हैं।
मीडियम अर्थ आर्बिट सैटेलाइट (MEO):
Medium Earth Orbit Satellites : मीडियम अर्थ आर्बिट सैटेलाइट (मध्य भू कक्षा) जिसे अंतरमाध्यमिक वृताकार कक्षा (Intermediate Circular Orbit (ICO)) भी कहते हैं। यह उपग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में निम्न भू कक्षा से उपर और भू-स्थिर कक्षा से नीचे के क्षेत्र में स्थित होता है। जिसकी ऊंचाई लगभग 2,000 किलोमीटर (1,243 मील) तक हो सकती है।
अधिकांशत ऐसे उपग्रह नेवीगेशन, कम्युनिकेशन और अंतरिक्ष के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए बनाए जाते हैं। इन उपग्रहों की कक्षीय अवधि 2 घंटे से लेकर 24 घंटे तक की हो सकती है, अर्थात MEO सैटेलाइट 2 घंटे से लेकर 24 घंटे के अंदर पृथ्वी का एक चक्कर लगाते हैं।
भारत में सैटेलाइट इंटरनेट
भारत में सैटेलाइट-आधारित ब्रॉडबैंड की घोषणा रिलायंस जियो ने 2023 में भारतीय मोबाइल कांग्रेस में की थी। जिओ ने इसे जिओ स्पेस फाइबर नाम से लांच किया है, जिसके माध्यम से अब हम आने वाले समय में भारत के हर इलाकों में सैटेलाइट इंटरनेट का उपयोग कर पाएंगे।
सैटेलाइट इंटरनेट के फायदे
विश्वव्यापी पहुँच
सैटेलाइट इंटरनेट ग्रामीण एवं दूरदराज क्षेत्रों के लिए बहुत ही लाभकारी है, जहां ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाना बहुत कठिन है। इसके माध्यम से उन क्षेत्रों में भी लोगों को इंटरनेट कनेक्टिविटी मिल सकती है जहां ऑप्टिक फाइबर केबल बिछाना पूर्ण रूप से असंभव है।
हाई स्पीड कनेक्टिविटी
शुरू में सैटेलाइट इंटरनेट की स्पीड बहुत अधिक नहीं थी, परंतु वर्तमान में सैटेलाइट इंटरनेट के माध्यम से आप हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी पा सकते हैं। जिसके माध्यम से आप लाइव स्ट्रीमिंग, गेमिंग के साथ-साथ रिमोट वर्क भी कर सकते हैं।
आसान इंस्टॉलेशन
सैटेलाइट इंटरनेट को इंस्टॉल करना दूसरे किसी इंटरनेट इंस्टॉलेशन से काफी आसान है। क्योंकि यहां किसी भी प्रकार का केवल नहीं बिछाना पड़ता है इसलिए यह बिना किसी देरी के आपको इंटरनेट सेवा प्रदान करती है।
प्राकृतिक आपदाओं में भी सुगमता
ब्रॉडबैंड अथवा अन्य किसी प्रकार के इंटरनेट में जहां किसी प्रकार की प्राकृतिक आपदा के कारण इंटरनेट सेवा बाधित हो जाती है। कई बार प्राकृतिक आपदाओं के कारण जमीन के अंदर एवं बाहरी तरफ पीछे केवल टूट जाते हैं जिसके कारण इंटरनेट पूरी तरह से बाधित हो जाता है। वही सैटेलाइट इंटरनेट कनेक्शन में ऐसी किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है। यह आपको हर प्रकार की स्थिति में निरंतर इंटरनेट कनेक्टिविटी सुनिश्चित करता है।
निष्कर्ष
वर्तमान में सैटेलाइट इंटरनेट एक अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी हैजिसके माध्यम से हम बिना किसी बाधा के डिजिटल दुनिया से जुड़ सकते हैं। यह अपने आसान इंस्टॉलेशन एवं हाई स्पीड कनेक्टिविटी, मोबिलिटी एवं हर प्रकार के स्थान पर उच्च गति इंटरनेट प्रदान करने के कारण यह उपयोगकर्ताओं के बीच में तेजी से लोकप्रिय विकल्प बनता जा रहा है।
जैसे-जैसे इसकी टेक्नोलॉजी बढ़ती जा रही है एवं इसमें नित्य नए-नए विकास हो रहे हैं, यह हमारे लिए एक नए स्रोत के रूप में उभर कर सामने आ सकता है। जिसके माध्यम से लोग जंगल, पहाड़ एवं दुर्गम इलाकों में भी आसानी से इंटरनेट से जुड़ सकते हैं।
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